भारतीय रेल में डीज़ल रेलइंजनों का इस्तेमाल पांचवें दशक के अंतिम वर्षों में यू.एस.ए. की मैसर्स एलको कम्पनी से रेल इंजनों का आयात करने के साथ शुरु हुआ । सन् 1961 में वाराणसी में डीज़ल रेलइंजन कारखाना की स्थापना के बाद नियमित रूप से डीज़ल इंजनों का निर्माण प्रारम्भ हो गया।
डीज़ल इंजनों के परिचालन के प्रारम्भिक वर्षों में, स्पेयर्स की सीमित मांग डीज़ल रेलइंजन कारखाना, वाराणसी द्वारा मुख्यत आयात के माध्यम से ही पूरी की जाती थी। किन्तु डीजल रेल इंजनों के फ्लीट के आकार और इनकी संख्या में निरन्तर बढ़ोतरी होने से स्पेयर्स की मांग भी बढ़ती गई।
डीज़ल रेलइंजनों को मेन्टीनेंस सहायता के लिए हाई प्रिसीजन कम्पोनेट की मांग के संदर्भ में सन् 1979 में पटियाला में डीज़ल कलपुर्जा कारखाना स्थापित करने का निर्णय लिया गया । इसका शिलान्यास 24 अक्तूबर-1981 को पटियाला में किया गया तथा 1986 में उत्पादन शुरु हो गया । इस दौरान एक निर्णय यह भी लिया गया कि डी.सी.डब्ल्यू., डीज़ल रेलइंजन की 18 वर्ष की सेवा कार्यकाल की अवधि पूरी होने के पश्चात् इसके पुनर्निर्माण का कार्य भी करेगा । तदनुसार इस परियोजना के अन्तर्गत फेज-।। की स्वीकृति दी गई और फिर सन् 1989 में रेलइंजनों के पुनर्निर्माण का कार्य आरम्भ हुआ। इस यूनिट में डीज़ल रेलइंजनों के आधुनिकीकरण के कार्य की महत्ता को समझते हुए जुलाई, 2003 में इस उत्पादन इकाई का नाम डी.सी.डब्ल्यू. से बदल कर डीज़ल रेलइंजन आधुनिकीकरण कारखाना,पटियाला कर दिया गया।
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